जल जिसका अमरित सदा, तट ज्यों पावन धाम।
भवायनी भागीरथी, सुरसरि गंगा नाम।।
देती जीवन दृष्टि है, देती नेह अनूप।
गंगा संस्कृति बोध है, गंगा माँ का रूप।।
चलें कुपथ की राह जो, लाती उन्हें सुमार्ग।
गंगा निर्मल भावना, गंगा सत् का मार्ग।।
पाती संसृति चेतना, पाता जीवन अर्थ।
माँ गंगा की छाँह में, मिटते सभी अनर्थ।।
करती शुभ प्रत्यक्ष है, देती पुण्य परोक्ष।
पापरहित गंगा करे, गंगा देती मोक्ष।।
गंगा पावन भावना, संकल्पों की हेतु।
गंगा शुभ की सुगति है, धर्म-कर्म की सेतु।।
जन-जीवन की चेतना, संस्कृति का आधार।
गंगा शुभ की कामना, देती पुण्य अपार।।
माँ गंगा की शक्ति ने, खड़े किये उद्योग।
हमने कूड़ा फेंक कर, दिये हज़ारों रोग।।
गंगा देती सुख हमें, करती प्रेम अपार।
युगों-युगों से है रही, भव सागर से तार।।
पूर्ण मनोरथ हों सभी, हो वैभव शुभ नाम।
हे गंगा मैया तुम्हें, बारम्बार प्रणाम।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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