Sunday 16 October 2022

बिल्ली गयी तिहाड़ : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे

जब-जब जागी अस्मिता, तिनके बने पहाड़।
चूहों ने हड़ताल की, बिल्ली गयी तिहाड़।।

कहें भेड़िये तो कहें, सोलह दूनी आठ।
पढ़ते हैं अब मेमने, गिनतारा के पाठ।।

हवा मुड़ी तो मुड़ गये, रँगे-पुते किरदार।
टूटा पत्ता अडिग था, चुना गया सरदार।।

मुख में कालिख पोतकर, भागा उल्टे पाँव।
आज सत्य ने झूठ का, चित्त किया हर दाँव।।

आयी हिरनी सामने, रख दी अपनी बात।
गया भेड़िया जेल में, बदल गये हालात।।

दीवारों से क्यों लड़ूँ, हर खिड़की स्वच्छन्द।
हाथ लिये हूँ चाबियाँ, कर दूँगा पट बन्द।।

बड़े हुए, तुम कह रहे, बेच-बेचकर इत्र।
होगा पर्दाफ़ाश तो, क्या बोलोगे मित्र।।

छोड़ा कभी न हौसला, लगा न जीवन भार।
कंटक पग-पग थे बिछे, फिर भी पहुँचा पार।।

अविचल था जलधार में, 'वीर' धीर था छत्र।
बहे वेग के संग सब, दुर्बल-निर्बल पत्र।।

चार घड़ी की बात है, दुनिया लेगी नाम।
आया आधी रात में, सूरज का पैग़ाम।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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