तुम मेरी छाया हो सकती हो
कार्बन कॉपी.....कभी नहीं
फोटोकॉपी.....सम्भव ही नहीं
किन्तु तुम उदास मत हो!
छाया भी
कभी-कभी
अपने वास्तविक स्वरूप से
बड़ी हो जाती है
मुँह बाये॔ खड़ी हो जाती है।
तुम उदास मत हो
छाया भी
कभी-कभी
अपने विशिष्ट प्रयासों से
विशिष्ट बना देती है
वास्तविक स्वरूप को
ढक लेती है धूप को।
हाँ, तुम उदास मत हो!
मैं जानता हूँ
तुम पल-पल
मेरे साथ रहती हो
दिल में घुमड़ते जज़्बात - अपने गम
मुझसे
कभी नहीं करती हो
हाँ, मैं जानता हूँ
हाँ, छाया!
मैं जानता हूँ।
मैं - मेरी काया
एहसानमंद हैं तुम्हारे
हाँ, छाया
विश्वास करो.....
मैंने कई बार कहना चाहा - शुक्रिया!
पर नहीं जुटा सका साहस
कि कह सकूँ- शुक्रिया।
मैं जानता हूँ
तुम सब समझ सकोगी
क्योंकि
तुमने
मेरी धड़कनों को सहेजा है
महसूस किया है- बड़ी सहजता से
हर बार
बार-बार।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
वार्तासूत्र- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com