Monday 17 June 2019

जग ने कहा कबीर - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

कोई बोले फक्कड़ी, कोई कहे कबीर।
एक रूप में सब छिपे, साधू, संत, फ़कीर।।

ढाई आखर बाँचता, हरता जग की चीख।
कहते उसे कबीर हैं, देता अनुपम सीख।।

इधर-उधर भटका बहुत, बाक़ी बचा न धीर।
जब मन मुट्ठी में धरा, जग ने कहा कबीर।।

छल-प्रपंच से जो परे, करे झूठ पर चोट।
जग में वही कबीर है, मन में तनिक न खोट।।

पीड़ा सबकी मेटता, देता सच्ची राह।
उसका नाम कबीर है, जिसे न कोई चाह।।

चिन्तन अमर कबीर का, देता ज्ञान अखंड।
जिसके आगे हो गया, खंड-खंड पाखंड।।

पाकर थोड़ी बुद्धि मैं, बन बैठा हूँ 'वीर'।
समझदार होता अगर, कहते लोग कबीर।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/06/2019