Tuesday 16 April 2019

उन गीतों को तुम स्वर देना : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढालूँगा,
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।

आने वाली पीढ़ी
सीख सकेगी
दर्द बाँचना
और दंश से बाहर आकर
खुले गगन में जीना।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा 
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।

काँटों से लड़कर
फूल चूमना
ये भी सब सीखेंगे
जब सबकुछ हो अपने विरुद्ध
कैसे जीता जाता महासमर।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।

जब पीड़ा समुद्र-सी गहरी हो
तब मुस्कानों का अभ्यास निरन्तर
कैसे सम्भव है
इस उपक्रम को सीख सकेंगे
आने वाले कल के लोग।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा 
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
फतेहपुर/उत्तर प्रदेश 
16/04/2019




Monday 15 April 2019

मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था
(7 क्षणिकाएँ)
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1-
देखो न
मैं चल रहा कब से
तुम्हारे साथ-साथ
परछाई की तरह,
और तुम
ढूँढ़ रही मुझे
यहाँ-वहाँ!

2-
मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था
पर ख़यालों में तुम थी
फुल नेटवर्क की भाँति,
तुम मन के मैसेन्जर में
रची-बसी हो
यों,
जैसे-
चन्द्र के साथ चन्द्रिका!

3-
लिख-लिख कर
मत मेटो
मन की गाढ़ी
अनुभूतियाँ,
आने दो हृदय के
उस पार से
इस पार तक
शब्दों की नाव में
नेह के परिन्दे!

4-
राधा
मत कहना
मैया से कुछ भी
इन पलों को जी लो
आओ
एक इन्द्रधनुष
रच दें
अन्तर में
हम-तुम!

5-
"अभी आयी मैं"
कहकर
चली गयी,
मैं ढूँढ़ता रहा
नदी की धार में
चन्द्रमुखी का प्रतिबिम्ब!

6-
मैंने पुकारा
आ गयी मही
निहारा फिर
बारम्बार
उस पार धरा
इस पार बेचैन आकाश!

7-
सहेली ने कहा-
हर शब्द कविता
संवेदना लबालब
चलो
दर्पण के सामने
एक साथ निहारें
एक-दूजे को,
और तुम
फिर लिखना एक नज्म
मेरी ख़ूबसूरती पर!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/04/2019
Hindi Micropoetry of
Dr. Shailesh Gupta Veer
Email: doctor_shailesh@rediffmail.com
[क्षणिका]

Thursday 11 April 2019

छू-मंतर : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

छू-मंतर
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आ गयी तुम
कैसी हो
सब ठीक-ठाक?
और थकान
ढेर सारी
पास आओ
बैठो
मेरी ओर देखो
अहा, तुम कितनी खूबसूरत हो
यों चेहरे पर
थकान की सिकन
शोभा नहीं देती
मुस्कुराओ
एक पोज ले लूँ तुम्हारी
नहीं ऐसे नहीं
एक क्लिक और
हाँ, ऐसे ही
अब आओ
चलो किचिन में
सरप्राइज़
वाऊ
कोल्ड कॉफी
हाँ, डियर!
चलो साथ बैठकर पीते है
सारी थकान
छू-मंतर!!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
11/04/2019