Thursday 26 August 2021

हिन्दी साहित्य लेखन में अंग्रेज़ी शब्दावली के प्रयोग का मर्म - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

वर्तमान में विमर्श का एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि हिन्दी साहित्य के सृजन में अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए या नहीं। इस पर कुछ लोग सहमत और कुछ लोग असहमत हो सकते हैं। कुछ लोग "लकीर के फ़कीर" वाली बातें करते हैं कि नहीं हिन्दी में अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग सर्वथा अनुचित है। हमें इस बात को समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेज़ी भाषा के अनेक शब्द हिन्दी और हमारी दिनचर्या में आत्मसात् हो गये हैं। हिन्दी बहुत लचीली भाषा है। कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनका कोई विकल्प भी नहीं है। पास और फ़ेल जैसे शब्दों का प्रयोग हम दिन में कई बार करते हैं और अपने हिन्दी शब्दों उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण से अधिक प्रचलित हैं। मोबाइल, लैम्प, लैपटॉप, ईमेल, वेबसाइट, ट्यूशन, ड्राइवर, कमीशन,  साइकिल, मोटरसाइकिल, कम्प्यूटर ऐसे अनेक शब्द हैं। बोलचाल में हिन्दी अपने उद्भव के समय से आज तक अनेक भाषाओं के अनेक शब्दों को स्वयं में आत्मसात् कर चुकी है। ये शब्द हिन्दी में इतने घुलमिल गये हैं कि दिनभर में इन्हें हम कई बार बोलते हैं और यह जान भी नहीं पाते कि ये शब्द मूलतः किन भाषाओं से आये हैं। यही हिन्दी की सामर्थ्य है। हिन्दी ने पुर्तगाली भाषा के आलपीन, आलमारी, अचार, बाल्टी, चाबी, फीता, तम्बाकू, इस्पात, कमीज, कनस्टर, कमरा, गमला, गोदाम, गोभी, तौलिया जैसे जाने कितने शब्द आत्मसात् कर लिये। कैंची, कुली, कुर्की, चेचक, चमचा, तोप, तमगा, तलाश, बेगम, बहादुर आदि तुर्की भाषा से चले आये। चाय और लीची ऐसे शब्द हैं जो चीनी भाषा से चले आये। कारतूश और अंग्रेज़ शब्द फ्रेंच भाषा के हैं। अरबी-फ़ारसी के तो बहुत सारे शब्द हिन्दी में प्रयोग होते हैं। अंग्रेज़ी भाषा ने भी कुछ शब्द हमारी हिन्दी से ग्रहण कर लिये। हमारी हिन्दी दुनिया की सर्वाधिक उदार भाषा है और सभी को अपने रंग में रँग लेती है। यही हिन्दी की ताक़त है। समकालीन साहित्य अपने समय और समाज की भाषा भी साथ लेकर चलता है। यह मेरी अपनी अवधारणा है। मैं लोक व्यवहार में अंग्रेज़ी भाषा के प्रचलित शब्दों से परहेज़ के पक्ष में कतई नहीं रहा, बशर्ते सौन्दर्य नष्ट न हो। हाँ, ये शब्द जनमानस भलीभाँति समझता हो। सुन्दर परिवेश के निर्माण में संलग्न साहित्य का मूल उद्देश्य सार्थक रूप से सभी तक पहुँचना है। इसमें भाषा सेतु का कार्य करती है। अन्य सुधीजन की राय मुझसे इतर हो सकती है। सभी के विचारों का सदैव स्वागत एवं सम्मान है।
● डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
सम्पर्क : अध्यक्ष- अन्वेषी संस्था 
18/17, राधा नगर
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Sunday 22 August 2021

रोटियाँ सेंक रही है/डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ की दस क्षणिकाएँ

हवाएँ
मेरे ख़िलाफ़ हैं
और मैं
हवाओं के ख़िलाफ़,
वजूद की लड़ाई जारी है!
जिसके लिए बाप ने 
सब कुछ/दाँव पे लगाया,
उसी बेटे ने बाप को
घर से भगाया!
मोबाइल में 'बिज़ी' बहू
'ईज़ीचेयर' में बैठी
पान चबा रही है,
दहेज-मुक़दमे में
जेल से बाहर आयी सास
उसके पाँव दबा रही है!
घर-ज़मीन बेच चुके
रामधनी की उम्मीदें
चकनाचूर हो गयीं,
हत्याभियुक्तों की ज़मानत
मंज़ूर हो गयी!
वे
पाप की गठरी
बहाकर आये हैं,
गंगा
नहाकर आये हैं!
'एसी-रूम' में बैठी बहू
'यू-ट्यूब' में
'मूवी' देख रही है,
गाँव की अनपढ़ सास
किचन में
रोटियाँ सेंक रही है!
धूर्त/धुरधंरों पे
भारी पड़ रहे हैं,
यह बात
धूर्त ही नहीं,
धुरंधर भी कह रहे हैं!
सच और झूठ ने
एक ही थाली में
खाना खाया,
अन्याय मुस्काया!
बेटे की शादी में
मौसा जी ने
महँगा कार्ड छपवाया,
और बीपीएल रिश्तेदारों को
आमंत्रण नहीं भिजवाया!
आज
सरकारी नल में
पानी आ रहा है,
यह ख़बर गंगू
सारे गाँव को बता रहा है!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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