Monday 18 May 2020

पाई-पाई जोड़ रहे थे

अच्छा है अब चुप रहना।

तुम मगन रहो अपनी दुनिया में
हम मगन रहें अपनी दुनिया में
अपनी-अपनी
दुनिया सबकी
चलते-चलते क्या कहना।

तुम उलझे हरदम गुणा-भाग में
हम रचे-बसे थे सत्य-राग में
अपना-अपना
दृष्टिकोण है
सबको इक दिन है ढहना।

तुम पाई-पाई जोड़ रहे थे
क्षण-क्षण सम्बन्ध मरोड़ रहे थे
जोड़-घटाना
दुनियादारी
संग समय के सब बहना।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com


Tuesday 5 May 2020

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के बेटी केन्द्रित हाइकु

बिटिया सृष्टि
चहकता संसार
बिटिया दृष्टि।

याद आ गये
गेंदा-गुलाब-जूही
हँसी बिटिया।

मोद मनाओ
बिटिया घर आयी
सोहर गाओ।

बेटी नभ में
जग का बोझ धरे
उड़ान भरे।

पिता मगन
शिखर पर बेटी
छूती गगन।

भीगे नयन
मायके आयी बिट्टो
यादें ही यादें।

आयी मायके
चहकती गुड़िया
ख़ुशी ही ख़ुशी।

विहँसी सृष्टि
महका कण-कण
हँसी बिटिया।

देख सितारे
मचल गयी गुल्लू
आँसू ही आँसू।

तारे गिनती
सहेली को बताती
चाँद-सी बेटी।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com 


Friday 1 May 2020

विश्व श्रमिक दिवस पर विशेष हाइकु/हाइगा : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

लेकर चला
पीठ पर महल
भूख सबल।

जी तोड़ श्रम
फावड़े पर भारी
रोटी की धुन।

हाथ हथौड़ा
पीठ पर तनय
श्रम की देवी।

कर्म ही धर्म
साहस ही सौन्दर्य
श्रम-देवियाँ।

पेट की भूख
ईंट-भट्ठा ही घर
श्रम विकल्प।

भूख चाहत
खो गया बचपन
बने श्रमिक।

©   डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005