Saturday 18 May 2019

तब जाकर कोई बुद्ध हुआ - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

(1)
पीड़ा से चित् जब क्रुद्ध हुआ।
तृष्णा से जीभर युद्ध हुआ। 
मन दुबक गया यों मुट्ठी में,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

(2)
जब भी अंतस् अवरुद्ध हुआ।
दृढ़ संकल्पों से शुद्ध हुआ। 
तब आर्य सत्य की खोज हुई,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।। 

(3)
माया से क्षुब्ध विरुद्ध हुआ।
तब दर्शन और प्रबुद्ध हुआ। 
आष्टांगिक मार्ग निकल आये,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

(4)
भ्रम में आबद्ध अशुद्ध हुआ। 
तप कठिन किया अनिरुद्ध हुआ।
निर्वाण मिला जब जीते जी,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

(5)
जब मार्ग सत्य का रुद्ध हुआ।
अन्याय-नीति में युद्ध हुआ।
दुख से मुक्ति मिली जन-जन को,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

(6)
ध्यान-कर्म से मन शुद्ध हुआ।
प्रज्ञा से और विशुद्ध हुआ।
जीवन-साधन जब हुए उच्च, 
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

(7)
जब आत्मतत्व परिरुद्ध हुआ।
जीवन का वेग निरुद्ध हुआ।
दर्शन ने पंचशील उपजे,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/05/2019
veershailesh@gmail.com 

Monday 6 May 2019

कविता दस्तावेज़ है - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

उसने भेजी
एक प्यारी-सी तस्वीर
ताकि
भागदौड़ के बीच
चलती रहे कविता।

वह जानती है कि
तस्वीर देखकर
मैं लिखूँगा
ज़रूर कोई कविता।

वह जानती है कि
कविता देगी ऊर्जा
मुझे और उसे
हम दोनों को।

वह जानती है कि
ज़रूरी है कविता
आपाधापी के बीच
मन को तरोताज़ा
रखने के लिए।

वह जानती है कि
कविता ज़रूरी है
वर्तमान और भविष्य के लिए।

वह जानती है कि
कविता दस्तावेज़ है
मेरे और उसके होने का,
समय और गाढ़ी अनुभूति को
रेखांकित करती ये कविताएँ
युगों तक नेह और संवेदनाओं का
प्रतिमान बनी रहेंगी
वह जानती है यह बात बख़ूबी!

मैं जानता हूँ उसके मन की ये बातें
तभी तो उसकी हर एक तस्वीर
प्रेरणा है मेरे लिए!!!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
फतेहपुर/उत्तर प्रदेश 
16/04/2019