[३ क्षणिकाएँ]
कोमल संवेदनाओं के बिन्दु-बिन्दु
यथार्थ की सतह पर आकर
मिट गये,
उमड़-घुमड़ रहा है
अश्रु-सरिता के तट पर
भावनाओं का प्रबल वेग!
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पाषाण हो गयीं
भावनाएँ,
टूट कर
बिखर गये-
युग-युगों के
संकल्प!
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अहंकार का
झंझावात
आया,
उड़ा ले गया
समय के प्राचीर पर
श्रम से बनाया
नेह का छप्पर!
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
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