मौसम ने जादू किया, हुई अनोखी बात।
सूरज के 'मैसेज़' पढ़े, चंदा आधी रात।।
उनके मीठे बोल से, मिलता पल-पल क्षेम।
सावन के आग़ोश में, बढ़ता जाता प्रेम।।
वे शायद नाराज़ हैं, नहीं करेंगी 'रीड'।
ढूँढ़ रहे 'इनबॉक्स' में, 'मैसेज़' हैं 'अनरीड'।।
श्वास-श्वास निःश्वास-सी, शब्द-शब्द निःशब्द।
लिखता हूँ जब प्रेम पर, चुक जाते क्यों शब्द।।
बातें उसकी रसभरी, देतीं मिसरी घोल।
मन झंकृत हो नाचता, शब्द-शब्द अनमोल।।
सदियों से बेचैन हूँ, कब आओगे पास?
आज मही ने जब कहा, मौन हुआ आकाश।।
रचे-बसे जब प्रेम में, मुखर हुआ विश्वास।
धड़कन तब पी से कहे, आओ मेरे पास।।
दर्द बँटाती 'माँ' सदा, दर्द बँटाती 'हीर'।
नेह मिले ममता तले, घट जाती है पीर।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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