Monday, 18 November 2024

दो आत्माएँ सन्निकट हैं/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

तुमने फिर छू लिया मुझे रोम-रोम
तुम आयी और कहकर चली गयी कि 
"मैं अंकित हूँ मानस-पटल पर सदा-सदा के लिए"
मैं निहारता रहा देर तक तुम्हारी आभा को
और निरन्तर अनुभूति होती रही
अलौकिक सौन्दर्य की
कभी लगा 
कि कोई अदृश्य ऊर्जा खींच रही मुझे
और फिर कभी
तुम नीहारिका बनकर लुभाती रही मुझे
अनायास तो नहीं सबकुछ 
जानता हूँ मैं भी
दो आत्माएँ सन्निकट हैं
कहना चाहती हैं बहुत कुछ 
ब्रह्माण्ड के दो छोर 
हो जाते हैं एक
अद्भुत है महामिलन
खगोलशास्त्रियों के लिए 
गहरा रहस्य है 
यह अद्वैत!
गोधूलि वेला के पल
बुला रहे हैं हमें
आओ सहेली
एक चक्कर और लगा लें
अन्तरिक्ष के दोनो ध्रुवों के मध्य!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

Sunday, 10 November 2024

मुझसे कहो कि/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

बहुत कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे 
कभी पास बैठो तो कह दूँ 
कि जिसे तुम कहती हो आकाश 
उस आकाश की मही तुम हो 
कि जिसे तुम समझती हो सूरज 
उस सूरज की चंदा तुम हो 
कभी बैठो न पास 
बहुत कुछ कहना चाहता है मेरा मन तुमसे 
तुम जादू करती हो 
और सारा आसमान गुलाबी हो जाता है 
तुम जादू करती हो 
और सूरज तुम्हारी आभा के आकर्षण में 
मंत्रमुग्ध हो जाता है 
कभी बैठो न पास आकर 
मुझसे कहो कि 
मैं बिताना चाहती हूँ 
तुम्हारे साथ जीवन के कुछ पल
कभी कहो न कि कुछ देर के लिए 
मुझे भर लो अपनी बाँहों में
और हो जाना चाहती हूँ तुम्हारी
पर तुम आती हो और चली जाती हो
सोचो कैसे सँभलता होगा हृदय!
प्रतीक्षा में बीत रहे युग
और पत्थर हो चली हैं आँखें
काश कि!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
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ईमेल- veershailesh@gmail.com