Monday, 30 June 2025

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' का दोहा साहित्य में योगदान

● प्रकाशन:-
* दोहा-संग्रह:- 
कब टूटेंगी चुप्पियाँ 
(श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली, 2025)
ISBN : 978-81-984164-8-3

* परिशिष्ट:-
प्रयागराज की चर्चित त्रैमासिक पत्रिका 'गुफ़्तगू' द्वारा डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहों पर 32 पृष्ठ का परिशिष्ट (जनवरी-मार्च 2025)
* समवेत दोहा-संकलनों में:- 
समकालीन दोहा कोश (सं- हरेराम समीप), दोहा द्वीप (सं- सतीश गुप्ता), आधुनिक दोहा, दोहे मेरी पसन्द के, हलधर के हालात (सं- रघुविन्द्र यादव), नयी सदी के दोहे, समकालीन दोहा, प्रतिरोध के दोहे, सोनचिरैया मौन है (सं- रघुविन्द्र यादव, डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'), दोहों में नारी (सं- रघुविन्द्र यादव, आशा खत्री 'लता'), सुनो समय को (सं- जय चक्रवर्ती), दोहे के सौ रंग-2, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, समकालीन दोहा शतक (सं- गरिमा सक्सेना)
* दोहा-विशेषांकों में:-
सरस्वती सुमन, बाबूजी का भारतमित्र, गुफ़्तगू, दि अण्डरलाइन, संवदिया, अनन्तिम, दि अण्डरलाइन पर्यावरणीय, शेषामृत, समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव, उत्तर वाहिनी, नये क्षितिज आदि पत्रिकाओं के दोहा-विशेषांकों में।
* अन्य:-
समय-समय पर अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समाचारपत्र, पत्रिकाओं, वेबपत्रिकाओं तथा वेबसाइट्स आदि में।

● सम्पादन कार्य:-
* दोहा-संकलन:- 
नयी सदी के दोहे, समकालीन दोहा, प्रतिरोध के दोहे, सोनचिरैया मौन है
* समीक्षा ग्रन्थ:- 
रघुविन्द्र यादव के दोहा-सृजन के विविध आयाम
* दोहा-विशेषांक:- 
दि अण्डरलाइन पर्यावरणीय दोहा विशेषांक, समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव

● दोहों पर आलेख:-
- 'समकालीन दोहा' की प्रकृति और प्रवृत्ति
- 'समकालीन दोहा' का वैशिष्ट्य 
- मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रति सजग है 'समकालीन दोहा'
- दोहा काव्य में प्रकृति एवं पर्यावरणीय चेतना

● परिचर्चा:-
प्रयागराज की चर्चित त्रैमासिक पत्रिका 'गुफ़्तगू' द्वारा डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहों पर ऑनलाइन परिचर्चा। (10/05/2020)

सन्दर्भ:-
* अपने दोहों से दिल में उतर जाते हैं डाॅ. वीर: सागर - INDIAN SPEED - https://indianspeed.page/article/apane-dohon-se-dil-mein-utar-jaate-hain-daaai-veer-saagar/XRB3uy.html
* डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ के दोहों पर हुई ऑनलाइन परिचर्चा - शब्द प्रवाह - https://shabdpravah.page/article/daaai-shailesh-gupt-veer-ke-dohon-par-huee-onalain-paricharcha/LyRGQ6.html
* डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ के दोहों पर हुई ऑनलाइन परिचर्चा http://www.parikalpnasamay.com/2020/05/blog-post_14.html




● संचालन:-
फेसबुक पर 'समकालीन दोहा' समूह। (29/08/2017 से)

● समकालीन दोहा पर साक्षात्कार:- 
लब्धप्रतिष्ठ दोहाकार रघुविन्द्र यादव जी एवं दिनेश शुक्ल जी के साक्षात्कार।

● भूमिका लेखन एवं समीक्षा कार्य:-
कतिपय दोहा-संग्रहों के लिए भूमिका लेखन एवं अनेक दोहा-संग्रहों/संकलनों की समीक्षा।

नवीन प्रोजेक्ट:- 
वर्तमान में दोहों पर कतिपय नवीन प्रोजेक्ट गतिमान हैं।

Monday, 9 June 2025

हवाओं के ख़िलाफ़/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की क्षणिकाएँ


1-
चीटियाँ भी
पानी में चलने लगी हैं,
बड़े-बड़े मगरमच्छों को
निगलने लगी हैं!

2-
कफ़न की कीमत
मुर्दे ही समझते हैं,
इसलिये/कफ़न के लिये
कभी नहीं लड़ते हैं!

3-
उसने जब-जब
तुममें
संभावनाएँ तलाशीं,
तुम दैत्य हो गये!

4-
वे हर अवसर पर
पर्चे छपवाते हैं,
चंदे के पैसों से
घर चलाते हैं!

5-
हवाएँ
मेरे ख़िलाफ़ हैं
और मैं
हवाओं के ख़िलाफ़,
वजूद की लड़ाई जारी है!

6-
वह प्रकृति में
स्फूर्ति भरती है,
किन्तु
अधिकारों के लिए
आज भी
संघर्ष करती है!

7-
धूर्त/धुरधंरों पे
भारी पड़ रहे हैं,
यह बात
धूर्त ही नहीं,
धुरंधर भी कह रहे हैं!

8-
गाँव से नगर
नगर से महानगर हो गये,
आदमी थे
जानवर हो गये!

9-
वे
पाप की गठरी
बहाकर आये हैं,
गंगा
नहाकर आये हैं!

10-
माँ-बाप
बच्चों की हैसियत बनाते हैं,
और आजकल बच्चे
माँ-बाप को
उनकी हैसियत बताते हैं!

11-
उधर
उन्नति के शिखर पर
भावी पीढ़ियाँ हैं,
इधर दरक रही
संस्कारों की सीढ़ियाँ हैं!

12-
महापुरुषों का चरित्र
आजकल नेता
घटाते-बढ़ाते हैं,
चुनाव जीत जाते हैं!

13-
रात ढल गयी
सुबह का
अपना पराक्रम है,
कुछ कर गुज़रने की
उम्मीद में
बुधिया
फिर 'विक्रम' है!

14-
अपनी स्वतन्त्रता
औरों की परतन्त्रता
उनका मूल मन्त्र है,
कुर्सियों का 
जनतन्त्र के ख़िलाफ़
सदियों से षड़यन्त्र है!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
सम्पर्क: 18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिनकोड: 212601
मोबाइल: 9839942005
ईमेल: veershailesh@gmail.com