कोई बोले फक्कड़ी, कोई कहे कबीर।
एक रूप में सब छिपे, साधू, संत, फ़कीर।।
ढाई आखर बाँचता, हरता जग की चीख।
कहते उसे कबीर हैं, देता अनुपम सीख।।
इधर-उधर भटका बहुत, बाक़ी बचा न धीर।
जब मन मुट्ठी में धरा, जग ने कहा कबीर।।
छल-प्रपंच से जो परे, करे झूठ पर चोट।
जग में वही कबीर है, मन में तनिक न खोट।।
पीड़ा सबकी मेटता, देता सच्ची राह।
उसका नाम कबीर है, जिसे न कोई चाह।।
चिन्तन अमर कबीर का, देता ज्ञान अखंड।
जिसके आगे हो गया, खंड-खंड पाखंड।।
पाकर थोड़ी बुद्धि मैं, बन बैठा हूँ 'वीर'।
समझदार होता अगर, कहते लोग कबीर।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/06/2019
एक रूप में सब छिपे, साधू, संत, फ़कीर।।
ढाई आखर बाँचता, हरता जग की चीख।
कहते उसे कबीर हैं, देता अनुपम सीख।।
इधर-उधर भटका बहुत, बाक़ी बचा न धीर।
जब मन मुट्ठी में धरा, जग ने कहा कबीर।।
छल-प्रपंच से जो परे, करे झूठ पर चोट।
जग में वही कबीर है, मन में तनिक न खोट।।
पीड़ा सबकी मेटता, देता सच्ची राह।
उसका नाम कबीर है, जिसे न कोई चाह।।
चिन्तन अमर कबीर का, देता ज्ञान अखंड।
जिसके आगे हो गया, खंड-खंड पाखंड।।
पाकर थोड़ी बुद्धि मैं, बन बैठा हूँ 'वीर'।
समझदार होता अगर, कहते लोग कबीर।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/06/2019
बहुत ही सुंदर, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteडॉ कविता भट्ट शैलपुत्री
हार्दिक आभार आपका
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