Sunday 22 August 2021

रोटियाँ सेंक रही है/डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ की दस क्षणिकाएँ

हवाएँ
मेरे ख़िलाफ़ हैं
और मैं
हवाओं के ख़िलाफ़,
वजूद की लड़ाई जारी है!
जिसके लिए बाप ने 
सब कुछ/दाँव पे लगाया,
उसी बेटे ने बाप को
घर से भगाया!
मोबाइल में 'बिज़ी' बहू
'ईज़ीचेयर' में बैठी
पान चबा रही है,
दहेज-मुक़दमे में
जेल से बाहर आयी सास
उसके पाँव दबा रही है!
घर-ज़मीन बेच चुके
रामधनी की उम्मीदें
चकनाचूर हो गयीं,
हत्याभियुक्तों की ज़मानत
मंज़ूर हो गयी!
वे
पाप की गठरी
बहाकर आये हैं,
गंगा
नहाकर आये हैं!
'एसी-रूम' में बैठी बहू
'यू-ट्यूब' में
'मूवी' देख रही है,
गाँव की अनपढ़ सास
किचन में
रोटियाँ सेंक रही है!
धूर्त/धुरधंरों पे
भारी पड़ रहे हैं,
यह बात
धूर्त ही नहीं,
धुरंधर भी कह रहे हैं!
सच और झूठ ने
एक ही थाली में
खाना खाया,
अन्याय मुस्काया!
बेटे की शादी में
मौसा जी ने
महँगा कार्ड छपवाया,
और बीपीएल रिश्तेदारों को
आमंत्रण नहीं भिजवाया!
आज
सरकारी नल में
पानी आ रहा है,
यह ख़बर गंगू
सारे गाँव को बता रहा है!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
सम्पर्क : 18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)
पिनकोड- 212601
वार्तासूत्र : 9839942005

1 comment:

  1. वर्तमान के विद्रूप को रेखांकित करतीं,तथाकथित आधुनिकता पर कटाक्ष करतीं उत्कृष्ट क्षणिकाएँ।बधाई शैलेष जी।

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