Friday, 20 January 2023

लघुकथा/बिजली - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

"इतना शानदार कॉफ़ी-हाउस! तुम्हारा है? रेडलाइट एरिया वाली बिजली हो न तुम?" दो मिनट घूरने के बाद कॉफ़ी सिप करते हुए विक्रम अचानक कॉफ़ी-हाउस की मालकिन से पूछ बैठा। "आप रेडलाइट एरिया जाते रहे हैं, तो ज़रूर मैं बिजली हूँ।" अपनी पत्नी संयोगिता के साथ कॉफ़ी पीने आये विक्रम को ऐसे उत्तर की अपेक्षा न थी। 

"चलो कोई बात नहीं", सकपका कर विक्रम ने बात को टालना चाहा तो संयोगिता बोल पड़ी- "अपने ऐब मत छुपाओ विक्रम। बताओ न कैसे पहचानते हो इन्हें?" 

बिजली ने कहा, मैम! "मैं बताती हूँ। विक्रम बाबू! मेरे पास आते-जाते आपने कभी बताया था कि कैसे आप पान का बिज़नेस करते-करते हीरों का बिज़नेस करने लगे। मैंने भी अपना बिज़नेस बदल लिया, जिस्म बेचने के बजाय कॉफ़ी बेचने लगी। कुछ ग़लत किया क्या मैंने!" बिजली का चेहरा स्वाभिमान की अनुभूति से दमक रहा था। 

विक्रम ने बिल का पेमेंट किया और संयोगिता के साथ सर झुकाये कॉफ़ी-हाउस से बाहर चला गया।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
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ईमेल- veershailesh@gmail.com

Thursday, 19 January 2023

महकी जूही : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के पुष्प केन्द्रित हाइकु

प्रेम-सरिता
आसमानी हैं ख़्वाब 
मन गुलाब।

श्रम की गाथा
हृदय ने पढ़ा तो
महकी जूही।

खिल गया मैं
ज्यों सरसों का पुष्प
देखा तुमने।

हो गया मन
कचनार का फूल
उभरी यादें।

संवेदनाएँ
गढ़ती रहीं आस्था
फूलों का जादू।

देकर आया
नरगिस का फूल
घुमड़े मेघ।

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