Thursday 19 January 2023

महकी जूही : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के पुष्प केन्द्रित हाइकु

प्रेम-सरिता
आसमानी हैं ख़्वाब 
मन गुलाब।

श्रम की गाथा
हृदय ने पढ़ा तो
महकी जूही।

खिल गया मैं
ज्यों सरसों का पुष्प
देखा तुमने।

हो गया मन
कचनार का फूल
उभरी यादें।

संवेदनाएँ
गढ़ती रहीं आस्था
फूलों का जादू।

देकर आया
नरगिस का फूल
घुमड़े मेघ।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

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