माना, तुम कहीं और थी
मैं कहीं और
पर गुम रहा
तुम्हारे ही ख़यालों में,
यादों का कारवाँ
जब तक पहुँचा
तुम्हारे पते पर,
तुम गुम थी कहीं और।
□
एक ओर आशाओं की
ऊँची पर्वत शृंखला
दूसरी ओर अवरोधों की
गहरी घाटियाँ,
दोनो के मध्य
जूझती है अनवरत्
मेरी इच्छा शक्ति।
□
शीत युद्ध जारी है
धरा और
अम्बर के बीच,
बुलाया है क्षितिज ने
अवलोकनार्थ।
□
खेत-मकान बेचकर
रामधनी का बेटा
शहर में रहता है,
गाँव नर्क है
बात-बात पर
कहता है।
□
पुश्तैनी मकान
पाँच बीघा ज़मीन
बेचकर
बहुत ख़ुश है फुल्लू,
कल उसने ख़रीद लिया है
पॉश एरिया में
नया
टू बीएचके फ़्लैट।
□
दस बिसुवे के मकान में
रहने वाला
गयादीन
दस बाई दस के
फ़्लैट में गुज़ारा करता है,
"महानगर में रहता हूँ"
शान से कहता है।
□
विकास के रास्ते पर
एक नयी किरण
दिखायी दी है,
आशान्वित हूँ
चुनाव पश्चात् भी
बना रहेगा
अस्तित्व।
□
झरोखों के पार भी
है कोई दुनिया,
चूल्हा-चौका करते
सोच रही
मुनिया।
□
आज बेटे को
मिली है
पहली किताब,
ख़ुश है अनपढ़ माँ
जैसे जीत लिया हो
उसने
ओलम्पिक में
स्वर्ण पदक।
□
त्रिज्या और जीवा के
झगड़े में
खो गयी परिधि
नहीं बचा
वृत्त का अस्तित्व।
□
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
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