मेरे ह्वाट्सएप इनबाॅक्स पर
सुबह की एक
प्यारी-सी तस्वीर
चली आयी
खिलखिलाते हुए,
उसका जादुई चेहरा
और उसकी आँखों में बसा मैं
प्रभात को दे रहे थे
एक नया आकार,
उसने फिर लिखे
कुछ गुलाबी शब्द
और बढ़ गयीं
दिल की धड़कनें,
वह निहार रही थी
बस मुझे और मुझे,
मैं जानता हूँ कि उसका यों निहारना
मही में भर देगा
ग़ज़ब का आत्मविश्वास
आकाश को कर देगा सतरंगी...
लो! शुरू हो गयी
बादलों की
आवाजाही,
यह सुबह की तस्वीर भी न!
- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
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