(1)
पीड़ा से चित् जब क्रुद्ध हुआ।
तृष्णा से जीभर युद्ध हुआ।
मन दुबक गया यों मुट्ठी में,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(2)
जब भी अंतस् अवरुद्ध हुआ।
दृढ़ संकल्पों से शुद्ध हुआ।
तब आर्य सत्य की खोज हुई,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(3)
माया से क्षुब्ध विरुद्ध हुआ।
तब दर्शन और प्रबुद्ध हुआ।
आष्टांगिक मार्ग निकल आये,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(4)
भ्रम में आबद्ध अशुद्ध हुआ।
तप कठिन किया अनिरुद्ध हुआ।
निर्वाण मिला जब जीते जी,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(5)
जब मार्ग सत्य का रुद्ध हुआ।
अन्याय-नीति में युद्ध हुआ।
दुख से मुक्ति मिली जन-जन को,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(6)
ध्यान-कर्म से मन शुद्ध हुआ।
प्रज्ञा से और विशुद्ध हुआ।
जीवन-साधन जब हुए उच्च,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
(7)
जब आत्मतत्व परिरुद्ध हुआ।
जीवन का वेग निरुद्ध हुआ।
दर्शन ने पंचशील उपजे,
तब जाकर कोई बुद्ध हुआ।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/05/2019
veershailesh@gmail.com
बहुत ही सारगर्भित, प्रासंगिक।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteआपकी इस रचना ने रोम में बुद्ध के भाव भर दिये
ReplyDeleteबड़ा कठिन मार्ग है ये
तप कठीन किया...
निराशा और आशा जीवन के दो पहलू
इनसे मुक्त हो तभी
जाके कोई बुद्ध हुआ
आपकी रचना से जो सत्य कर ज्ञान झलक रहन है
उम्मीद है हमें मार्ग दर्शन करेगी एक साधारण जीवन की ओर
शुभकामनायें
आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
Deleteहार्दिक आभार आपका!
वाह्ह्ह...सर 🌹🌹🙏🙏.....सार्थक सृजन... रचना ने मन में बुद्ध भावना जगाई.... सुंदर...
ReplyDeleteबुद्ध के जीवन-दर्शन व सिद्धांतों को कम शब्दों में बड़े सुन्दर ढंग से व्यक्त किया आपने।हार्दिक बधाइयाँ। श्रेष्ठ सृजन।
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