फिर गैलरी में तुम्हारे चित्र
(10 क्षणिकाएँ)
----------------------------
1-
आओ लिख दो
मेरे हृदय पर
संकल्पों का लेखा-जोखा
और टाँक दो
मासूमियत के धागे से
नेह के मधुर पल!
2-
मेरे और तुम्हारे
होने का यथार्थ
नहीं टाँक सकेगी
समय की स्याही
उन पलों की
चुप्पी का साम्राज्य
देता है काल की
असीमित परिधि को
चुनौती!
3-
तुम्हारे प्रत्येक आलेख में
अंकित होगा
मेरा अस्तित्व,
किन्तु आने वाली पीढ़ी
नहीं बाँच सकेगी
हमारी प्रीति के अभिलेख!
4-
तुम मेरे हृदय में हो
तुम मेरी चेतना में हो
जानकार यह
मौन है आकाश
कि तुम्हारी स्मृतियाँ
अधिक हैं
उसके विस्तार से!
5-
मोबाइल की 'टोन' बजी
'इनबॉक्स' से 'काॅल-डिटेल्स' तक
खँगाला सब कुछ
मैसेज़/मिस्ड-काॅल
कुछ भी नहीं।
जाकर 'गैलरी' में
फिर से देखे
तुम्हारे हृदयस्थ चित्र!
6-
सम्भावना समय की
गति यथार्थ की
मैं खोजता हूँ
स्वयं में तुम्हें!
7-
यकायक
छलक उठते हैं
हृदय में असंख्य भाव
तुम पढ़ लेती हो सब,
मौन विवशता है
जानता हूँ मैं!
8-
विमर्श का प्रत्येक कोण
हमें देता है
नयी ऊर्जा,
भावों का अतिरेक
ऊर्जा के समानुपात में
हृदय में समानान्तर
भर देता है
नेह की पोटली!
9-
तुम आयी और चली गयी
यह कहकर कि
"तुम प्रबल प्रवाहित भाव भरे"
और मैं तुम्हारे
वापस आने की प्रतीक्षा में
पिरोता रहा क्षणिकाओं में
अपने मन की बात!
10-
तुम अप्सरा नहीं
प्रेरणा हो
तुम्हारे होने का अर्थ
भलीभाँति
समझती हैं
ये क्षणिकाएँ
जैसे समझती हो
मेरे होने का अर्थ तुम!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
27/11/2019
Hindi Micropoetry of
Dr. Shailesh Gupta Veer
Email: doctor_shailesh@rediffmail.com
(10 क्षणिकाएँ)
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1-
आओ लिख दो
मेरे हृदय पर
संकल्पों का लेखा-जोखा
और टाँक दो
मासूमियत के धागे से
नेह के मधुर पल!
2-
मेरे और तुम्हारे
होने का यथार्थ
नहीं टाँक सकेगी
समय की स्याही
उन पलों की
चुप्पी का साम्राज्य
देता है काल की
असीमित परिधि को
चुनौती!
3-
तुम्हारे प्रत्येक आलेख में
अंकित होगा
मेरा अस्तित्व,
किन्तु आने वाली पीढ़ी
नहीं बाँच सकेगी
हमारी प्रीति के अभिलेख!
4-
तुम मेरे हृदय में हो
तुम मेरी चेतना में हो
जानकार यह
मौन है आकाश
कि तुम्हारी स्मृतियाँ
अधिक हैं
उसके विस्तार से!
5-
मोबाइल की 'टोन' बजी
'इनबॉक्स' से 'काॅल-डिटेल्स' तक
खँगाला सब कुछ
मैसेज़/मिस्ड-काॅल
कुछ भी नहीं।
जाकर 'गैलरी' में
फिर से देखे
तुम्हारे हृदयस्थ चित्र!
6-
सम्भावना समय की
गति यथार्थ की
मैं खोजता हूँ
स्वयं में तुम्हें!
7-
यकायक
छलक उठते हैं
हृदय में असंख्य भाव
तुम पढ़ लेती हो सब,
मौन विवशता है
जानता हूँ मैं!
8-
विमर्श का प्रत्येक कोण
हमें देता है
नयी ऊर्जा,
भावों का अतिरेक
ऊर्जा के समानुपात में
हृदय में समानान्तर
भर देता है
नेह की पोटली!
9-
तुम आयी और चली गयी
यह कहकर कि
"तुम प्रबल प्रवाहित भाव भरे"
और मैं तुम्हारे
वापस आने की प्रतीक्षा में
पिरोता रहा क्षणिकाओं में
अपने मन की बात!
10-
तुम अप्सरा नहीं
प्रेरणा हो
तुम्हारे होने का अर्थ
भलीभाँति
समझती हैं
ये क्षणिकाएँ
जैसे समझती हो
मेरे होने का अर्थ तुम!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
27/11/2019
Hindi Micropoetry of
Dr. Shailesh Gupta Veer
Email: doctor_shailesh@rediffmail.com
[क्षणिका]
बहुत ही सुंदर, शैलेश जी। ऐसा लगा कि मैं ही लिझ रही हूँ और मैं ही पढ़ रही हूँ। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी अभिभूत करती है। हार्दिक आभार आपका।
Deleteउत्कृष्ट अभिलेख के सार रूप
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका शैलपुत्री जी।
DeleteBahut hi sunder
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