Monday, 30 December 2019

शीत विशेष हाइकु : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

1-
पढ़े पहाड़ा
दिन-दिन दोगुना
गुलाबी जाड़ा।

2-
काँपती काया
धूप ने पोछे आँसू
हँसे पिताजी।

3-
शीत की सत्ता
रानी अब 'गलन'
'कोहरा' राजा।

4-
सर्द हवाएँ
मौसम मनमानी
वाचाल मूक।

5-
बर्फीला पथ
धुन्ध ने रोक दिया
सूर्य का रथ।

6-
दूर धूप से
रहे तो जान पाये
रिश्ता धूप से।

7-
वांछा शीत की
चार दिनों में ऊबे
अति शीत की।

8-
भोर कोहरा
सिकुड़े हुए दिन
रात कोहरा।

9-
मुदित मन
बारिश-गर्मी-सर्दी
हँसे बिटिया।

10-
भयाक्रान्त भू
गढ़े नये मानक
भीषण ठण्ड।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com

Thursday, 19 December 2019

आत्मतत्व का चिन्तन कहता - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

आओ हर लूँ पीर तुम्हारी
बैठो मेरे पास।

जूही चम्पा गुलबहार तुम
लैला जुलियट हीर,
तुम ही चंदा तुम वसुंधरा
देती मन को धीर,
तुम जीवन की आशा सजनी
तुम निर्मल विश्वास।

मैं गाता हूँ तुम होकर जब
तुम हो जाती वीर,
मन पावन हो जाता ऐसे
ज्यों गंगा का नीर,
मत उदास तुम रहो सहेली
तुम मेरी हर आस।

आत्मतत्व का चिन्तन कहता
मिट्टी सकल शरीर,
नेह प्रीति की गढ़े कहानी
चुप रहती शमशीर,
पार लगायें राधाकिशना
सब उनके ही दास।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
veershailesh@gmail.com


Wednesday, 4 December 2019

विश्व हाइकु दिवस पर 10 हाइकु : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

1-
नदी झूमती
पार कर त्रासदी
नभ चूमती।

2-
खिलौने लाये
चहक रहे बच्चे
पापाजी आये।

3-
याद आ गये
गेंदा-गुलाब-जूही
हँसी बिटिया।

4-
पुराना गया
शुद्ध पर्यावरण
सर्वस्व नया।

5-
पूरे हो गये
पहाड़-से सपने
पिता खो गये।

6-
जीवन-मृत्यु
आरोही-अवरोही
शाश्वत सत्य।

7-
सपने धुआँ
हाथ हो गये पीले
रोटी-बेलन।

8-
छाये बादल
उमस छू-मंतर
मन-कमल।

9-
अहं को ढोतीं
अनाचार की साक्षी
सदियाँ रोतीं!

10-
नारी ने किया-
सत्य का साक्षात्कार
जग को चुभा!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'