Thursday, 19 December 2019

आत्मतत्व का चिन्तन कहता - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

आओ हर लूँ पीर तुम्हारी
बैठो मेरे पास।

जूही चम्पा गुलबहार तुम
लैला जुलियट हीर,
तुम ही चंदा तुम वसुंधरा
देती मन को धीर,
तुम जीवन की आशा सजनी
तुम निर्मल विश्वास।

मैं गाता हूँ तुम होकर जब
तुम हो जाती वीर,
मन पावन हो जाता ऐसे
ज्यों गंगा का नीर,
मत उदास तुम रहो सहेली
तुम मेरी हर आस।

आत्मतत्व का चिन्तन कहता
मिट्टी सकल शरीर,
नेह प्रीति की गढ़े कहानी
चुप रहती शमशीर,
पार लगायें राधाकिशना
सब उनके ही दास।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
veershailesh@gmail.com


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