Sunday 2 February 2020

विश्लेषण के क्रम में : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

तुमने कहा-
"जाकर दर्पण में स्वयं को निहारना
आज और सुन्दर दिखायी दोगे।"

मैंने जब
दर्पण में स्वयं को निहारा
दिखायी दी तुम
और तुम्हारी खिलखिलाती मुस्कान।

जानती हो, तुमने कहा-
"देख लिया दर्पण में
स्वयं का स्वरूप
पुरुष प्रकृति से आच्छादित है।"
और मैंने कहा- "हाँ, तुम सही हो।"

जानती हो, विश्लेषण के क्रम में
मैं यह जान पाया कि
सौन्दर्य के दर्शन शास्त्र का
प्रत्येक पक्ष
चेतना के मनोविज्ञान पर
स्पष्ट दृष्टि रखता है।

एक बात और-
तुम यथार्थ हो
और मैं भी,
दर्पण भी भ्रम नहीं है।

आभासी सत्ता से परे
वास्तविक सत्ता के
अस्तित्व को समझना
अति रोमांचकारी है
और इस रोमांचक यात्रा में
तुम मेरी
और मैं तुम्हारा।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र)
पिन कोड- 212601
veershailesh@gmail.com


No comments:

Post a Comment