(3 क्षणिकाएँ)
जब उसने भेजी
एक क्यूट मुस्कान वाली तस्वीर
और लिखा कि-
"रख लो इसे बायीं ज़ेब में
सेफ़्टी पिन लगा कर।"
तब गलबहियाँ करते,
मैंने साक्षात् देखा-
धरा को अम्बर से मिलते।
□ □
उसने कहा मुझसे
"अच्छे लगते हो तुम।"
ऐसा लगा
जैसे किसी ने सौंप दिया
मेरे हाथों में
ख़ुशियों का महाकाश।
□ □
तब बादलों ने
समन्दर की स्याही से
गगन के भाल पर
लिख दिया-
जन्म-जन्मान्तर का साथ,
जब उसने रख दिया
मेरे धड़कते दिल पर
अपना जादुई हाथ।
□ □
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com
[क्षणिका]
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