हिन्दी है मन
काया भारतवर्ष
हर्ष ही हर्ष।
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छुआ हमने
जब-जब आकाश
मुस्कायी हिन्दी।
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अपनापन
पुकारे बिन्दी-बिन्दी
हम हैं हिन्दी।
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है हिन्दी प्यारी
अस्मिता वतन की
माता हमारी।
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सब तो मिला
हिन्दी की छाँव तले
आकाश खिला।
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है चिन्दी-चिन्दी
अपनों से ही तंग
भाल की बिन्दी।
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जस का तस
नहीं बदला कुछ
हिन्दी दिवस।
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छाये हुए हैं
अंग्रेज़ी के चमचे
हिन्दी-उत्सव।
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दिन विशेष
गा रहे हैं कल से
हिन्दी के गीत।
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बन्दी ज़मीर
राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा
कौन गम्भीर।
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हिन्दी दिवस
आयी फिर से याद
बरस बाद।
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मन है हिन्दी
हिन्दी है हिन्दुस्तान
भाषा महान।
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हिन्दी सर्वदा
देती मन को तोष
जय-उद्घोष।
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लिपि विश्व में
अकेली वैज्ञानिक
देवनागरी।
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प्यार ही प्यार
मातृभाषा का गर्व
उन्नति-द्वार।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र)
पिन कोड- 212601
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