जीत की गाथा
गणतंत्र उत्सव
हर्ष ही हर्ष
एक सूत्र में गुँथा
मेरा भारतवर्ष।
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गूँजते बोल
तिरंगे की शान में
अनवरत
धरा से व्योम तक
जय भारतमाता।
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मूक चेतना
मूल्य स्वतंत्रता का
नहीं जानती
स्वयं के अस्तित्व को
नहीं पहचानती।
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इतिहास में
अंकित हर एक
पंक्ति मानती
रक्त की बूँद-बूँद
स्वतंत्रता जानती।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
veershailesh@gmail.com
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