क्षितिज में छिटक गये
सुनहरे ख़्वाब,
और इधर
मन में
खिलते रहे
नैतिकता के गुलाब!
□
उनके प्रेम का
घड़ा भर आया,
प्रेम देह तक
उतर आया!
□
नयी कॉलोनी में
बिजली के खम्भे
'शोपीस' बनकर खड़े हैं,
तार खींचने के सवाल पर
ज़िम्मेदार
कान में तेल डाले पड़े हैं!
□
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
मोबाइल- 9839942005
veershailesh@gmail.com
सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन ।
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