Sunday 3 September 2023

झंझावातों के मध्य खिला हूँ : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

जीवन की व्यथा-कथा लिखता हूँ
नवगीत कहो 
या गीत।

हारे मन को सम्बल देता हूँ
निर्बल को भुजबल देता हूँ 
पीड़ा के स्वर में घुला-मिला 
उद्घोष कहो 
या जीत।

मिली प्रीति तो प्रीति बुना मैंने
संसृति का झंकार गुना मैंने 
झंझावातों के मध्य खिला 
उल्लास कहो
या प्रीत।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
मोबाइल- 9839942005
veershailesh@gmail.com

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