Wednesday 28 August 2024

दंग सिनेमाहाल था/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे

दंग सिनेमाहाल था, ख़ुद दोनो थे दंग।
पिया और के संग था, प्रिया और के संग।।

बढ़ी आँख की रोशनी, फूले पिचके गाल। 
बेटे ने परदेस से, पूछा माँ का हाल।।

बच्चों को रोटी मिले, नेह मनाये गेह।
जैसे फिरकी नाचती, नाच रही है देह।।

जब-जब जागी अस्मिता, तिनके बने पहाड़।
चूहों ने हड़ताल की, बिल्ली गयी तिहाड़।।

देह बिकाऊ ब्राण्ड है, देह गणित का जोड़।
विज्ञापन के दौर में, मची हुई है होड़।।

नये दौर में हो गये, मैले सभी चरित्र।
बेटे की जो मित्र थी, अब पापा की मित्र।।

वही प्रेम का आवरण, वही नीम की छाँव।
बहुत दिनों के बाद मैं, लौटा अपने गाँव।।

अम्बर में ऊँचे उड़ूँ, तो भी रहूँ कबीर।
पैरों तले ज़मीन हो, ज़िन्दा रहे ज़मीर।।

बैठ 'किचन' में आज फिर, आँसू रही उलीच।
अपनापन है ढूँढ़ती, घर-दफ़्तर के बीच।।

कलुष कहीं होगा नहीं, होगी केवल प्रीत।
लिखती रहना लेखनी, मानवता के गीत।।

सम्पर्क-
डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था)
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

No comments:

Post a Comment