उधर
उन्नति के शिखर पर
भावी पीढ़ियाँ हैं,
इधर दरक रही
संस्कारों की सीढ़ियाँ हैं!
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वे
इनबॉक्स में कुछ और
ग्रुप में कुछ और
लिखते हैं,
ज़रूरत के मुताबिक़
कई चेहरों में
दिखते हैं!
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महापुरुषों का चरित्र
आजकल नेता
घटाते-बढ़ाते हैं,
चुनाव जीत जाते हैं!
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रात ढल गयी
सुबह का
अपना पराक्रम है,
कुछ कर गुज़रने की
उम्मीद में
बुधिया
फिर 'विक्रम' है!
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वह शब्दों की क़ीमत
नहीं जानता है,
प्रकाशन को महज
व्यवसाय मानता है!
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हंगामा
जन्मसिद्ध
अधिकार है,
जनता
लाचार है!
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पंख लगे तो उड़ा
ठोकर लगी तो मुड़ा
उड़ने-मुड़ने में
कुछ नहीं बचा,
सब कुछ प्रकृति का रचा!
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सम्पर्क-
डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था)
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com
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