मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था
(7 क्षणिकाएँ)
---------------------------
1-
देखो न
मैं चल रहा कब से
तुम्हारे साथ-साथ
परछाई की तरह,
और तुम
ढूँढ़ रही मुझे
यहाँ-वहाँ!
2-
मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था
पर ख़यालों में तुम थी
फुल नेटवर्क की भाँति,
तुम मन के मैसेन्जर में
रची-बसी हो
यों,
जैसे-
चन्द्र के साथ चन्द्रिका!
3-
लिख-लिख कर
मत मेटो
मन की गाढ़ी
अनुभूतियाँ,
आने दो हृदय के
उस पार से
इस पार तक
शब्दों की नाव में
नेह के परिन्दे!
4-
राधा
मत कहना
मैया से कुछ भी
इन पलों को जी लो
आओ
एक इन्द्रधनुष
रच दें
अन्तर में
हम-तुम!
5-
"अभी आयी मैं"
कहकर
चली गयी,
मैं ढूँढ़ता रहा
नदी की धार में
चन्द्रमुखी का प्रतिबिम्ब!
6-
मैंने पुकारा
आ गयी मही
निहारा फिर
बारम्बार
उस पार धरा
इस पार बेचैन आकाश!
7-
सहेली ने कहा-
हर शब्द कविता
संवेदना लबालब
चलो
(7 क्षणिकाएँ)
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1-
देखो न
मैं चल रहा कब से
तुम्हारे साथ-साथ
परछाई की तरह,
और तुम
ढूँढ़ रही मुझे
यहाँ-वहाँ!
2-
मैं ऑफ़लाइन ज़रूर था
पर ख़यालों में तुम थी
फुल नेटवर्क की भाँति,
तुम मन के मैसेन्जर में
रची-बसी हो
यों,
जैसे-
चन्द्र के साथ चन्द्रिका!
3-
लिख-लिख कर
मत मेटो
मन की गाढ़ी
अनुभूतियाँ,
आने दो हृदय के
उस पार से
इस पार तक
शब्दों की नाव में
नेह के परिन्दे!
4-
राधा
मत कहना
मैया से कुछ भी
इन पलों को जी लो
आओ
एक इन्द्रधनुष
रच दें
अन्तर में
हम-तुम!
5-
"अभी आयी मैं"
कहकर
चली गयी,
मैं ढूँढ़ता रहा
नदी की धार में
चन्द्रमुखी का प्रतिबिम्ब!
6-
मैंने पुकारा
आ गयी मही
निहारा फिर
बारम्बार
उस पार धरा
इस पार बेचैन आकाश!
7-
सहेली ने कहा-
हर शब्द कविता
संवेदना लबालब
चलो
दर्पण के सामने
एक साथ निहारें
एक-दूजे को,
और तुम
फिर लिखना एक नज्म
मेरी ख़ूबसूरती पर!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/04/2019
Hindi Micropoetry of
Dr. Shailesh Gupta Veer
Email: doctor_shailesh@rediffmail.com
एक साथ निहारें
एक-दूजे को,
और तुम
फिर लिखना एक नज्म
मेरी ख़ूबसूरती पर!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
15/04/2019
Hindi Micropoetry of
Dr. Shailesh Gupta Veer
Email: doctor_shailesh@rediffmail.com
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