सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढालूँगा,
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
आने वाली पीढ़ी
सीख सकेगी
दर्द बाँचना
और दंश से बाहर आकर
खुले गगन में जीना।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
काँटों से लड़कर
फूल चूमना
ये भी सब सीखेंगे
जब सबकुछ हो अपने विरुद्ध
कैसे जीता जाता महासमर।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
जब पीड़ा समुद्र-सी गहरी हो
तब मुस्कानों का अभ्यास निरन्तर
कैसे सम्भव है
इस उपक्रम को सीख सकेंगे
आने वाले कल के लोग।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
मैं गीतों में ढालूँगा,
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
आने वाली पीढ़ी
सीख सकेगी
दर्द बाँचना
और दंश से बाहर आकर
खुले गगन में जीना।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
काँटों से लड़कर
फूल चूमना
ये भी सब सीखेंगे
जब सबकुछ हो अपने विरुद्ध
कैसे जीता जाता महासमर।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
जब पीड़ा समुद्र-सी गहरी हो
तब मुस्कानों का अभ्यास निरन्तर
कैसे सम्भव है
इस उपक्रम को सीख सकेंगे
आने वाले कल के लोग।
सखी, तुम अपने हिय की पीर कहो
मैं गीतों में ढाालूँगा
उन गीतों को तुम स्वर देना
सदियों तक गाये जायेंगे।।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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