तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
तुम हो धड़कन हृदय की
तुम स्थायी संचार हो
इस अनमने मन का
एक तुम उपचार हो
रिमझिम फुहारें
मौसम सुहाना
और तारों का चमकना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
तुम चन्द्रिका हो चन्द्र की
लालिमा सूर्य की
हो परी अम्बर से आयी
सुनो ध्वनि तूर्य की
सुबह प्रश्न था तुम्हारा
प्रेम कहते हैं किसे
अब समझना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
श्वास बनकर चल रही तुम
इतने पास हो
साज जीवन के तुम्हीं से
सच्ची आस हो
कहते किसे हैं
अब समझा
मैं फिसलना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
प्रणय अपना हो सके शायद
अन्तर में गहरे बस सकूँ शायद
अम्बर धरा से मिल सके शायद
महाकाव्य एक नया लिख सकूँ शायद
संशय तनिक हो
सुन लेना सखी
उर का धड़कना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
तुम हो धड़कन हृदय की
तुम स्थायी संचार हो
इस अनमने मन का
एक तुम उपचार हो
रिमझिम फुहारें
मौसम सुहाना
और तारों का चमकना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
तुम चन्द्रिका हो चन्द्र की
लालिमा सूर्य की
हो परी अम्बर से आयी
सुनो ध्वनि तूर्य की
सुबह प्रश्न था तुम्हारा
प्रेम कहते हैं किसे
अब समझना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
श्वास बनकर चल रही तुम
इतने पास हो
साज जीवन के तुम्हीं से
सच्ची आस हो
कहते किसे हैं
अब समझा
मैं फिसलना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
प्रणय अपना हो सके शायद
अन्तर में गहरे बस सकूँ शायद
अम्बर धरा से मिल सके शायद
महाकाव्य एक नया लिख सकूँ शायद
संशय तनिक हो
सुन लेना सखी
उर का धड़कना,
तीखी बहुत है धारा नदी की
तिस पर तुम्हारा ~ यों मचलना।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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