Thursday 23 April 2020

सृष्टि मुस्कुरा उठी

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
*
तुमने मुझसे कहा- प्राण हो तुम!
मैंने कहा- तुम चेतना!
एक हो गयी हमारी श्वासों की गति
एक हो गयीं हमारी धड़कनें
परस्पर आबद्ध हो गये-
हमारे संकल्प
हमारी आस्था
और हमारे विश्वास।
सृष्टि मुस्कुरा उठी-
देखकर हमारी जुगलबन्दी,
और मैंने तुम्हारे भाल पर
चिपका दिया रत्नजड़ित बिंदिया
तुम्हारे कपोल हो गये सूर्य की लालिमा से
एक दृष्टि धीरे से मेरी ओर
और मेरी बाँहों में
सम्पूर्ण सृष्टि,
तुम्हारा होना
मेरे होने का प्रमाण है,
बस यों ही रहो मेरे पास।
*

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