Tuesday 5 May 2020

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के बेटी केन्द्रित हाइकु

बिटिया सृष्टि
चहकता संसार
बिटिया दृष्टि।

याद आ गये
गेंदा-गुलाब-जूही
हँसी बिटिया।

मोद मनाओ
बिटिया घर आयी
सोहर गाओ।

बेटी नभ में
जग का बोझ धरे
उड़ान भरे।

पिता मगन
शिखर पर बेटी
छूती गगन।

भीगे नयन
मायके आयी बिट्टो
यादें ही यादें।

आयी मायके
चहकती गुड़िया
ख़ुशी ही ख़ुशी।

विहँसी सृष्टि
महका कण-कण
हँसी बिटिया।

देख सितारे
मचल गयी गुल्लू
आँसू ही आँसू।

तारे गिनती
सहेली को बताती
चाँद-सी बेटी।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com 


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