Monday 18 May 2020

पाई-पाई जोड़ रहे थे

अच्छा है अब चुप रहना।

तुम मगन रहो अपनी दुनिया में
हम मगन रहें अपनी दुनिया में
अपनी-अपनी
दुनिया सबकी
चलते-चलते क्या कहना।

तुम उलझे हरदम गुणा-भाग में
हम रचे-बसे थे सत्य-राग में
अपना-अपना
दृष्टिकोण है
सबको इक दिन है ढहना।

तुम पाई-पाई जोड़ रहे थे
क्षण-क्षण सम्बन्ध मरोड़ रहे थे
जोड़-घटाना
दुनियादारी
संग समय के सब बहना।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com


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