जल-जीवन
व्यर्थ हैं जल बिन
'शुक्र'-'मंगल'।
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जल-चेतना
अद्भुत-अनमोल
जीवन्त सृष्टि।
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जब बचेंगे
जंगल-जलाशय
बचेंगे हम।
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जल-रक्षण
अति-आवश्यक
सुखी भविष्य।
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जल के साथ
जिये कल की पीढ़ी
रोप दो पौधे।
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जल अस्तित्व
जल गढ़े जीवन
जल सर्वस्व।
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निहित प्राण
बूँद-बूँद जीवन
जल प्रमाण।
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जल-आधार
बूँद-बूँद बचाओ
पुण्य कमाओ।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com
Monday, 22 March 2021
विश्व जल दिवस पर विशेष हाइकु : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
Wednesday, 10 March 2021
मम्मी : चार ताँका - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
घर को घर
इंसान को इंसान
बनाती मम्मी
पीती विष सर्वदा
पिलाती सुधा सदा।
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शुभ मुहुर्त
घर आ गयी बहू
ख़ुश हुई माँ
रह गयी निक्कमी
ग़ुम हो गयी मम्मी।
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काम ही काम
दिन-रात सुश्रुषा
उफ़ न आह
देवताओं ने कहा-
विलक्षण है मम्मी।
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हार के जीता
नौ दो ग्यारह हुईं
बद-दुआएँ
भारी पड़ीं फिर से
मम्मी की प्रार्थनाएँ।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
ईमेल: veershailesh@gmail.com
Monday, 8 March 2021
डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के नारी विमर्श पर केन्द्रित हाइकु
दुनिया पढ़े
नेह के कीर्तिमान
नारी ने गढ़े।
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तितली बोली-
क्यों न उड़ूँ आज़ाद
सन्नाटा छाया।
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नारी ने किया-
सत्य का साक्षात्कार
जग को चुभा।
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बेटी नभ में
जग का बोझ धरे
उड़ान भरे।
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नदी झूमती
पार कर त्रासदी
नभ चूमती।
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कंटक पथ
हैरानी में दुनिया
जीत रही स्त्री।
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दम्भ से मुक्त
विश्वास ही विश्वास
नारी की सदी।
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रोज़ छूती स्त्री
हिमालय की चोटी
बिन बताये।
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पीड़ा की यात्रा
फिर भी असीमित
प्रेम की मात्रा।
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धरा खोजती
चाँद के आर-पार
अस्तित्व-नद।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com
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