Monday 8 March 2021

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के नारी विमर्श पर केन्द्रित हाइकु

दुनिया पढ़े
नेह के कीर्तिमान 
नारी ने गढ़े।
तितली बोली-
क्यों न उड़ूँ आज़ाद
सन्नाटा छाया।
नारी ने किया-
सत्य का साक्षात्कार 
जग को चुभा।
बेटी नभ में 
जग का बोझ धरे
उड़ान भरे।
नदी झूमती
पार कर त्रासदी 
नभ चूमती।
कंटक पथ
हैरानी में दुनिया 
जीत रही स्त्री।
दम्भ से मुक्त 
विश्वास ही विश्वास 
नारी की सदी।
रोज़ छूती स्त्री 
हिमालय की चोटी
बिन बताये।
पीड़ा की यात्रा 
फिर भी असीमित
प्रेम की मात्रा।
धरा खोजती
चाँद के आर-पार
अस्तित्व-नद।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com

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