दुनिया पढ़े
नेह के कीर्तिमान
नारी ने गढ़े।
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तितली बोली-
क्यों न उड़ूँ आज़ाद
सन्नाटा छाया।
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नारी ने किया-
सत्य का साक्षात्कार
जग को चुभा।
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बेटी नभ में
जग का बोझ धरे
उड़ान भरे।
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नदी झूमती
पार कर त्रासदी
नभ चूमती।
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कंटक पथ
हैरानी में दुनिया
जीत रही स्त्री।
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दम्भ से मुक्त
विश्वास ही विश्वास
नारी की सदी।
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रोज़ छूती स्त्री
हिमालय की चोटी
बिन बताये।
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पीड़ा की यात्रा
फिर भी असीमित
प्रेम की मात्रा।
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धरा खोजती
चाँद के आर-पार
अस्तित्व-नद।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com
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