उर कपाट
खोलती माँ सर्वदा
दे बुद्धि-बोध
अंधकार हरती
प्रकाश है भरती।
□
जय शारदे
माँ भरो संचेतना
बुद्धि उर में
मैं हूँ शरणागत
करता हूँ अर्चना।
□
उर में जले
ज्योति सदा ज्ञान की
नमन माता
शरणागत पुत्र
है मस्तक झुकाता।
□
- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
No comments:
Post a Comment