खोजता श्रम
ईंट-रोड़ों के बीच
रोटी का हल,
देह हुई विदेह
भूख नीलकमल।
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खोजतीं नित्य
सुलगती हड्डियाँ
रोटी के मंत्र,
मगन अर्थशास्त्र
मगन लोकतंत्र।
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पेट में पीठ
या है पीठ में पेट
सभ्यता ढीठ,
श्रमिक का संत्रास
बाँच सकता काश।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
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