Sunday 10 July 2022

लघुकथा/दुआएँ - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

चारबाग़ बस-स्टैण्ड से निकलकर बस बँगला बाज़ार आकर रुकी थी कि सवारियों के साथ-साथ दो किन्नर भी आ गये। दुआओं के बदले सभी से बख़्शीश लेने लगे। कुछ ने बख़्शीश दी और दुआएँ लीं तो कुछ ने मुँह चुरा लिये। कुछ ने अपने चेहरे चौड़े किये और तरह-तरह की बातें करने लगे। 

अब तक एक किन्नर पीछे की सीट पर बैठे दिनेश बाबू तक पहुँच गया था। "ऐ गुमसुम बाबू! कुछ दो।" वे अपने में ही खोये रहे और कुछ नहीं बोले। "अरे बाबू! इतना उदास क्यों।" "कोई बात नहीं। माता रानी सब दुख हर लें और सदा ख़ुश रहो आप, मेरी दुआ है।" इतना कहकर किन्नर जैसे ही मुड़ा, भतीजे की मौत से टूटे हुए दिनेश बाबू उसके हाथ में  दो सौ की नोट रखते हुए फफक पड़े- "माता रानी तुम्हें भी ख़ुशहाल रखें मेरे बच्चे।"

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

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