"तुम लोग कुछ और क्यों नहीं करते? यों ताली पीटकर और गा-बजाकर कब तक काम चलेगा? समय के साथ बदलते क्यों नहीं?" लड़का होने की आहट पाकर घर आयी किन्नरों की टोली को मोटा शगुन देते हुए आरव ने एक प्रश्न हवा में उछाल दिया तो एक किन्नर ने उत्तर भी दे दिया- "और हम कर भी क्या सकते हैं? हमारे घरवाले हमारे सगे तो अपने हुए नहीं। और तुम कहते हो कि", तभी दूसरा किन्नर बोल पड़ा- "बाबू! आपका इतना बड़ा बिज़नेस है, आप ही कोई काम दे दो। हम छोड़ दें ये सब। हम सब गँवार नहीं, कुछ पढ़े-लिखे भी हैं।" आरव के चेहरे की हवाइयाँ उड़ने लगीं कि टोली में से एक किन्नर और बोल पड़ा- "साहब! आपका समाज हमें बख़्शीश तो दे सकता है, पर पेट भरने के लिए कोई काम नहीं।"
पास बैठी आरव की माँ भी बोल पड़ी- "जब तूने प्रश्न किया था तो अब इनको उत्तर भी दे।" "इस टोली के सभी सदस्य आज अभी से मेरी कम्पनी के इम्पलॉयी होंगे। काम का बँटवारा कल कर दूँगा।" आरव के इतना कहते ही नवजात शिशु का क्रन्दन वातावरण में अलौकिक मिठास घोलने लगा। मानो नवजीवन के उत्सव में आकाश से पुष्पवर्षा हो रही थी।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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