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अधरों पर मुस्कान थी, बाँहों में मनमीत।
रात चाँदनी ने लिखे, सदियों लम्बे गीत।।
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अदा सुनहरी प्रेम की, चॉकलेट-सा टोन।
‘चल झूठे’ उसने कहा, काट दिया फिर फ़ोन।।
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कैसे प्रिय से बात हो, व्यर्थ गये सब ‘वर्क’।
लाख कोशिशें कर चुकी, बैरी है ‘नेटवर्क’।।
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रहे बदलते करवटें, जागे सारी रात।
पहले उनसे फ़ोन पर, हो जाती थी बात।।
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महुआरे-से दो नयन, बाँते हैं शहतूत।
सरस प्रकृति का रूप वो, मैं वसंत का दूत।।
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तुम मीरा तुम राधिके, तुम कान्हा की वेणु।
तन हूँ मैं तुम आत्मा, तुम बिन मैं, जस रेणु।।
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मिले आज जब ‘बीच’ में, नैन हुए तब चार।
दिल मेरा बैंजो हुआ, मन हो गया गिटार।।
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प्रियतम आओ हम रँगें, धरती से आकाश।
बोल रही है भावना, सच हो सकता काश।।
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com
Sunday, 20 September 2020
रात चाँदनी ने लिखे : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे
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