Sunday 20 September 2020

रात चाँदनी ने लिखे : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे


अधरों पर मुस्कान थी, बाँहों में मनमीत।
रात चाँदनी ने लिखे, सदियों लम्बे गीत।।

अदा सुनहरी प्रेम की, चॉकलेट-सा टोन।
‘चल झूठे’ उसने कहा, काट दिया फिर फ़ोन।।

कैसे प्रिय से बात हो, व्यर्थ गये सब ‘वर्क’।
लाख कोशिशें कर चुकी, बैरी है ‘नेटवर्क’।।

रहे बदलते करवटें, जागे सारी रात।
पहले उनसे फ़ोन पर, हो जाती थी बात।।

महुआरे-से दो नयन, बाँते हैं शहतूत।
सरस प्रकृति का रूप वो, मैं वसंत का दूत।।

तुम मीरा तुम राधिके, तुम कान्हा की वेणु।
तन हूँ मैं तुम आत्मा, तुम बिन मैं, जस रेणु।।

मिले आज जब ‘बीच’ में, नैन हुए तब चार।
दिल मेरा बैंजो हुआ, मन हो गया गिटार।।

प्रियतम आओ हम रँगें, धरती से आकाश।
बोल रही है भावना, सच हो सकता काश।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
 18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com
 

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