Saturday 19 September 2020

आधी चॉकलेट : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

(7 क्षणिकाएँ)
1-
प्रेम में तुम्हारा 
मुझसे बतियाना
मेरे भीतर भर देता है 
आनन्द का असीम सागर,
मन निर्मल तरंगों में 
खोकर 
हो जाता है 
आकाश।

2-
मेरी बाँहों में 
आकर तुम 
महसूस करती हो
जितना सुरक्षित ख़ुद को,
तुम्हारे नेह की 
परिधि में 
मैं भी 
महसूस करता हूँ 
यही।

3-
तुम्हारी पीड़ा- मेरी
मेरी पीड़ा- तुम्हारी 
आओ! तुम्हारी हथेली में 
अपनी पलकों से
रचा दूँ
अपने नाम की 
मेंहदी।

4-
आमने-सामने
मैं और तुम,
मध्य में-
प्रबल अनुभूतियाँ 
निष्काम प्रेम की, 
मुस्कुराती रहो तुम बस,
मैं निहारता रहूँ।

5-
हाँ, उड़ो जी भर अम्बर में 
मेरे हाथ
पंख बनकर
रहेंगे तुम्हारे साथ,
निराश पलों में 
देख लेना मेरी ओर 
बिखेर कर 
चुटकी भर मुस्कान।

6-
आज तुमने दी
अपने हिस्से से
आधी चॉकलेट मुझे
असमंजस में मैं 
खाऊँ/या सहेज लूँ 
अलौकिक है-
यों तुम्हारा चॉकलेट देना।

7-
फिर तुम्हें देखा आज
गोटेदार लहँगे में 
तुम्हारा अनुपम सौन्दर्य 
देखकर लजा रही थीं
अप्सराएँ, 
और तुम्हारी क्यूट मुस्कान 
फिर अन्तर्निहित हो गयी
हृदय में मेरे।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com 

2 comments:

  1. बहुत मनोहारी क्षणिकाएँ... बधाई

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  2. अत्यंत सुंदर सृजन

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