(7 क्षणिकाएँ)
1-
प्रेम में तुम्हारा
मुझसे बतियाना
मेरे भीतर भर देता है
आनन्द का असीम सागर,
मन निर्मल तरंगों में
खोकर
हो जाता है
आकाश।
2-
मेरी बाँहों में
आकर तुम
महसूस करती हो
जितना सुरक्षित ख़ुद को,
तुम्हारे नेह की
परिधि में
मैं भी
महसूस करता हूँ
यही।
3-
तुम्हारी पीड़ा- मेरी
मेरी पीड़ा- तुम्हारी
आओ! तुम्हारी हथेली में
अपनी पलकों से
रचा दूँ
अपने नाम की
मेंहदी।
4-
आमने-सामने
मैं और तुम,
मध्य में-
प्रबल अनुभूतियाँ
निष्काम प्रेम की,
मुस्कुराती रहो तुम बस,
मैं निहारता रहूँ।
5-
हाँ, उड़ो जी भर अम्बर में
मेरे हाथ
पंख बनकर
रहेंगे तुम्हारे साथ,
निराश पलों में
देख लेना मेरी ओर
बिखेर कर
चुटकी भर मुस्कान।
6-
आज तुमने दी
अपने हिस्से से
आधी चॉकलेट मुझे
असमंजस में मैं
खाऊँ/या सहेज लूँ
अलौकिक है-
यों तुम्हारा चॉकलेट देना।
7-
फिर तुम्हें देखा आज
गोटेदार लहँगे में
तुम्हारा अनुपम सौन्दर्य
देखकर लजा रही थीं
अप्सराएँ,
और तुम्हारी क्यूट मुस्कान
फिर अन्तर्निहित हो गयी
हृदय में मेरे।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
doctor_shailesh@rediffmail.com
बहुत मनोहारी क्षणिकाएँ... बधाई
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर सृजन
ReplyDelete