Friday 11 February 2022

'हाँ' में 'हाँ' कह दिया : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की क्षणिकाएँ

मैं प्रबल भावनाओं से 
ओत-प्रोत
वह सुनती रही मुझे
और कह गयी 
एक स्वर में
कि धरा ने 
अम्बर की
'हाँ' में 'हाँ' कह दिया।
उसकी धड़कनों में मैं
मेरी श्वाँस-श्वाँस में वह
प्रेम की प्रत्येक धुन 
छू रही है 
अपनी पराकाष्ठा को,
आज सूरज-चाँद 
मिलकर गायेंगे
सातों जनम तुम 
एक-दूसरे के।
निश्चल कंधों का
पाकर आसरा
निश्छलता ने 
निश्चय के साथ 
कहा-
"हाँ",
वसन्त का विस्तृत हो गया आकार
मास से वर्ष 
वर्ष से युगों-युगों तक।
संयोग यों ही नहीं होते
मिलें न मिलें
शाश्वत प्रेम 
दैहिकता से दूर 
आत्मीयता का आकांक्षी,
हम हृदय से बतियाते
कोसों दूर 
निश्छल प्रेम मे रमे
दो अलौकिक पंछी।
एक सुबह
हम-तुम 
एक दोपहर 
हम-तुम 
एक शाम 
हम-तुम 
अनवरत् यही क्रम,
तुम्हारे हृदय में मैं ही मैं
और मेरे हृदय में
तुम ही तुम।
उसने कहा-
तुम तुम हो।
मैंने कहा-
तुम सबकुछ।
धरा हो गयी गुलाबी
और आसमान में 
उग आये-
असंख्य इन्द्रधनुष।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
veershailesh@gmail.com

5 comments:

  1. अति उत्तम सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको आदरणीय

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  2. आहा... अत्यंत सुंदर सृजन सर.... अति हृदयस्पर्शी... सर.... 🌹🌹🌹🌹बधाई सर 🙏🙏🙏

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  3. वाह वाह शैलेश जी ,एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएं ।

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  4. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ!हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत अच्छी रचना हार्दिक बधाइयाँ भाईसाहब

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