Monday 28 February 2022

सारा शहर जंगल हो रहा है - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

अर्थव्यवस्था पर हावी है बाज़ारवाद
बिक रही है हर चीज़ 
बिक रही है देह
बिक रहे हैं 
आदमी/औरत/और न जाने क्या-क्या...
सब कुछ सस्ता है
सबसे सस्ता 
ईमान है।
सारा शहर जंगल हो रहा है 
और जंगल का शेर
तानाशाह हो रहा है
तानाशाह बेच रहा है 
सब कुछ 
सब कुछ।

मण्डियाँ सजी हुईं हैं
हर चीज़ बिकाऊ है
बोलियाँ लग रही हैं 
आम आदमी सिर्फ़ भेड़ है
सुन रहा हूँ कि शेर बेच रहा है 
सारा शहर
किसी  भूखे भेड़िये के हाथ।

भेड़िये ने   कल  ही कहा है  
कि वह करेगा सुरक्षा
सभी भेड़ों की/बकरियों की/सभी की...
सभी को देगा रोज़गार 
और देगा 
भूख से तिलमिलाये लोगों को 
अनाज,
बैलों को बिना किसी श्रम के 
चारा
ऊँटों को राहत की थैलियाँ।
कुछ बता रहे हैं इसे
औद्योगिक क्रान्ति 
अर्थशास्त्र का ककहरा न जानने वाले
समझा रहे हैं 
नयी अर्थव्यवस्था का गणित 
बता रहे हैं अब 
ख़ुशहाल हो जायेगा शहर 
और सभी के घर
भर जायेंगे 
सोने की गिन्नियों से।
शेर बता रहा है
अपने निर्णयों के लाभ और भावी परिणाम
पीटी जा रही हैं तालियाँ 
थोक के भाव 
भेड़िये की पाकर शह
सियार कर रहे हैं हर ओर
हुआँ-हुआँ
ज़ोर-शोर से,
टीवी चैनलों पर चल रही हैं 
'लाइव डिबेट्स'
कि ऐसा होगा 
आने वाले दिनों में 
शहर का रुतबा।

अब बोली लग रही है शहर की
आसमान का रंग 
बदल जायेगा कुछ दिन बाद
अभी 
बोलना मना है।


© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
veershailesh@gmail.com

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