Saturday 5 February 2022

वसन्त पर आधारित विशेष हाइकु : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

मन मुदित
प्रतीक्षाओं का अन्त
छाया वसन्त।
मन-पतंग
गुलाबी कल्पनाएँ
लाया वसन्त।
झाँका फागुन 
व्योम की दुबारी से
मन-बासंती।
मन-मदन 
चले आये मनाने 
रूठे सजन।
बदले रंग
अवनि क्या अम्बर 
समय संग।
पुराना गया 
शुद्ध पर्यावरण 
सर्वस्व नया।
हँसे मदन 
हो गया शिशिरान्त
मन अशान्त।
बुझे न आग 
जब घी डाले माघ
सुरीले राग।
बहकी मैना 
मैं-ना, मैं-ना करती 
वसन्त रैना।
जी भर कूकी 
वसन्तसखा संग 
वसन्तदूती।
गुलाबी गाल 
हुए और गुलाबी 
वासन्ती जादू।
कोहरा छँटा 
मधुमास बिखेरे 
मादक छटा।
फागुनी व्योम 
पीताम्बरा धरती 
करें चैटिंग।
खिलीं फसलें
खिले टेसू के फूल 
मन मचले।
चले मदन 
मुरझाया संयोग 
हँसा वियोग।
धरा लजायी 
पढ़कर ई-मेल 
व्योम ने भेजा।
वसन्त मस्त
मस्त वेलेंटाइन 
पस्त वियोग।
पुष्पबाण-से 
धँसे हृदयान्तर 
पुराने पत्र।
नवचेतना 
आनन्द व उल्लास 
माघ महीना।
भौंरों की गूँज 
फूटीं नयी कोपलें 
आया वसन्त।
मिले वे गले
प्रेम के वशीभूत 
दुनिया जले।
चहका मन
हरियाईं उम्मीदें 
आया वसन्त।
नवमल्लिका
संकल्प की दुविधा 
काम के बाण।
कूकी कोयल
मगन हुए भौंरे
वसन्त-यात्रा।
काम की माया 
मदनोत्सव छाया 
वसन्त आया।
बौराये आम
उतरे रतिराज
बौरायी धरा।
चहकी मैना
उतरे रतिराज
कन्दर्पोत्सव।
स्वर्ण सरसों 
प्रकृति काममय 
करे ठिठोली।
मेड़ पे मेड़ 
घूम रहे बोराये 
आम के पेड़।
सन्त-असन्त
रतिवर के तीर
मन-वसन्त।
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पीतवसना।
सौ-सौ की नोटें 
महबूब से दूर 
यादें कचोटें।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
veershailesh@gmail.com
कलाकृति   :  रंजना कश्यप 

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर लेखन!

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  2. अत्यंत सुंदर हाइकु सृजन ।हार्दिक बधाई आपको आदरणीय वीर सर 💐🙏😊

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  3. अद्भुत बहुत बधाइयाँ मनोज जैन मधुर भोपाल

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