Tuesday, 29 March 2022

पीड़ा जीवन-दृष्टि है : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे

पल-पल भारी हो गये, दुख सहते दिन-रात। 
जोड़े हमने उम्र भर, पर न जुड़े जज़्बात।। 

कैसा यह संत्रास है, कटे-कटे से हाथ। 
पीड़ा-आँसू रात दिन, केवल अपने साथ।। 

चीखूँ जितना दर्द में, होती उतनी टीस। 
ख़ुशियों में मेरे रही, पीर हमेशा बीस।। 

कभी निकलती आह है, कभी निकलती चीख। 
चार पलों का मोद मन, माँग रहा है भीख।।

सब कुछ मेरे पास है, पीड़ा, दुख, संत्रास। 
जब मैंने सुख से कहा, लौटा बहुत उदास।। 

दुख संगी ताउम्र है, सुख पल दो पल साथ। 
बहुत सोचकर दर्द का, थाम लिया है हाथ।। 

पीड़ा जीवन-दृष्टि है, सुख है संगी क्षुद्र। 
अविरल आँसू-वृष्टि से, निकला महासमुद्र।। 

सुख के आगे दुख बसा, दुख के आगे जीत। 
जो उलझा सुख-फेर में, वह रहता भयभीत।। 

भरी सभा में आज मैं, फूँक रहा हूँ शंख। 
दुख का परचम है सदा, सुख चिड़िया के पंख।। 

नज़र फेरकर हैं गये, जबसे वे बेदर्द। 
दरिया आँखों से बहे, और देह से दर्द।। 

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था)
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005

Sunday, 27 March 2022

अभी यहाँ मत आना - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

आत्मावलोकन के पूर्व की अवस्था 
उत्साह/बेसब्री/और आतुरता से 
आवृत होती है 
कछुए की गति की भाँति उमड़ती भावनाएँ
जा मिलती हैं 
खरगोश की भाँति दौड़ती कल्पनाओं से।
ओर-छोर/पीर-पोर
निरावृत होता है सब कुछ 
अबोध बालक के कौतूहलपूर्ण मस्तिष्क की तरह 
जारी रहता खेल बदस्तूर 
जब तक नहीं आ जाता 
काँव-काँव की टेर लगाता
कौवा मुँडेर पर। 

आत्मावलोकन की स्थिति में 
खुलते हैं कपाट मस्तिष्क के 
पुनर्जाग्रत होती है चेतना 
चिन्तन-धार छलछलाने लगती है
अनायास 
लौट आती है खोयी हुई चेतना।

सार्थक-निरर्थक 
सत्य-असत्य 
शाश्वत-क्षणभंगुर 
सर्वस्व स्पष्ट हो जाते हैं
लौकिक माँ के अलौकिक स्वरूप की तरह बेमानी हो जाती हैं जय-पराजय
छू-मंतर हो जाती हैं मन की कुंठाएँ
सारा कलुष झुलस जाता है 
विचारों की सात्विक किरणों से
हलचल होती है धरा में 
सिहर जाता है व्योम 
सुनायी देती है एक तेज़ आवाज़ 
किसी तारे की 
भाई! अभी यहाँ मत आना 
जब तक हो सके 
धरा पर रहकर
प्रकाश फैलाओ 
वहीं टिमटिमाओ।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था)
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005

Wednesday, 23 March 2022

बाथिंग टब में मौज : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

बूँद-बूँद की क़ीमत जानो
भाषण में
कल बोल रहे थे
नेता रामधनी।

जिनके घर के कुत्ते करते
बाथिंग टब में मौज
पूल नहाने जाते लेकर 
नौकर-चाकर फ़ौज,
पानी पेरिस से मँगवाते
कोरा ज्ञान 
बाँटते हर क्षण 
सपना हनी-मनी।

दोनो मीटिंग पानी मिलना
जिस बस्ती में ख़्वाब 
आलीशान खड़ा है बँगला
पाट दिया तालाब,
ऊपर तक है पहुँच मुकम्मल
न्यूज़ बताती
उनके दम से
फिर सरकार बनी।

जिनके कारण प्यासे तड़पें
आती तनिक न शर्म 
पानी-पानी ख़ुद पानी है
ऐसे जिनके कर्म, 
शोषित पूछ रहे प्रश्न मगर
वे क्या देंगे उत्तर 
जिनकी
आँखें ख़ून सनी।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
veershailesh@gmail.com

Monday, 7 March 2022

चोका - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

बोले बाबूजी
उमस बहुत है
चलो घूमने,
महका कोना-कोना 
चहके बच्चे 
सब लगे झूमने,
चाचू चहके
चहके दादा-दादी 
करेंगे मस्ती
और गाँव की सैर,
खायेंगे आम
वट की छाँव तले
आता आनन्द 
वहाँ नदी में तैर,
सेल्फ़ी भी लेंगे 
कुछ नया करेंगे 
सभी झूमते
अपनी कहकर,
वहीं रुकूँगा
आख़िर बाबूजी ने 
रख ही डाले
दो कुर्ते तहकर,
ए जी! दो साड़ी
रख लेना मेरी भी
अभी काम है
छुटके के बाबूजी! 
सबने देखा
मुस्कानों की टोली का
कर स्वागत
अम्मा लेकर आयी
कुछ खाने को
खिले हुए चेहरे 
ख़ुश जाने को-
होने लगी तैयारी,
खाकर सब्जी-पूरी।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601