Sunday, 26 March 2023

उदास मत हो : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

तुम मेरी छाया हो सकती हो 
कार्बन कॉपी.....कभी नहीं 
फोटोकॉपी.....सम्भव ही नहीं 
किन्तु तुम उदास मत हो!
छाया भी 
कभी-कभी 
अपने वास्तविक स्वरूप से 
बड़ी हो जाती है 
मुँह बाये॔ खड़ी हो जाती है। 
तुम उदास मत हो 
छाया भी 
कभी-कभी 
अपने विशिष्ट प्रयासों से 
विशिष्ट बना देती है 
वास्तविक स्वरूप को 
ढक लेती है धूप को।
हाँ, तुम उदास मत हो! 
मैं जानता हूँ 
तुम पल-पल 
मेरे साथ रहती हो 
दिल में घुमड़ते जज़्बात - अपने गम 
मुझसे 
कभी नहीं करती हो 
हाँ, मैं जानता हूँ
हाँ, छाया! 
मैं जानता हूँ।
मैं - मेरी काया 
एहसानमंद हैं तुम्हारे
हाँ, छाया
विश्वास करो.....
मैंने कई बार कहना चाहा - शुक्रिया! 
पर नहीं जुटा सका साहस
कि कह सकूँ- शुक्रिया।
मैं जानता हूँ 
तुम सब समझ सकोगी 
क्योंकि 
तुमने 
मेरी धड़कनों को सहेजा है 
महसूस किया है- बड़ी सहजता से 
हर बार 
बार-बार।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
वार्तासूत्र- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

Wednesday, 22 March 2023

चलें कौन-सा दाँव : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

नहीं रही क्यों 
कहाँ गयी अब
गुलमोहर की छाँव,
इसी प्रश्न पर 
मौन साध कर 
बैठा सारा गाँव।

गांधारी हो गयी अस्मिता 
धृतराष्ट्र न्याय के पैमाने
नतमस्तक हो कर सत्य-शील 
बैठे दुर्योधन पैताने,
अंगराज-सा
भाग्य विवश है
कटे हुए हैं पाँव।

इधर चेतना के सर पर
कुछ काले बादल मँडराये
उधर बवंडर हुआ माफ़िया
कट्टा-बन्दूकें लहराये,
भयाक्रांत 
रोटी के सपने
चलें कौन-सा दाँव।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
वार्तासूत्र- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

Wednesday, 15 March 2023

महासमुद्र में : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

अद्भुत - अद्भुत 
अकल्पनीय 
अनिर्वचनीय 
है-
उसका/मेरा 
तादात्म्य।
निःसन्देह!
कौन है वह 
..........
..........
अन्तिम सत्य 
जीवन.....जीव 
.....आनन्द 
(चरम-क्षणिक)
(परम-स्थायी)
जो भी हो 
मिट जाता है 
देह का अस्तित्व 
आत्मा विलीन हो जाती है 
महासमुद्र में।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

Tuesday, 14 March 2023

अनुपम कृति : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

जिस पल 
मैं/तुममें
तुम/मुझमें
खो जाती हो,
उस पल 
मैं- पुरुष 
तुम- प्रकृति 
हो जाती हो, 
मैं 
सामान्य से परे 
और तुम!
विधाता की 
अनुपम कृति 
हो जाती हो!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
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[पेन्टिंग : रंजना कश्यप]

Thursday, 2 March 2023

उस फागुन की चैट- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे

दृग सिग्नेचर कर रहे, एक हुए सब भाव।
फागुन ने जादू किया, पास हुआ प्रस्ताव।।

फागुन मन बादल हुआ, इच्छाएँ आकाश।
इन्द्रधनुष उर में उगे, टूट गये सब पाश।।

फागुन ने आँचल छुआ, संग लिये संकल्प।
नहीं प्रेम का लोक में, कोई और विकल्प।।

नयनकोर पर बन रहे, सुस्मृतियों के फ़्लैट।
इस फागुन में पढ़ रहा, उस फागुन की चैट।।

फागुन का त्यौहार था, मिलने की मनुहार।
पढ़ा पत्र पर विवश था, टपके अश्रु हज़ार।।

आँख मिलीं तो मिल गया, सहसा मुझे जवाब।
गुझिया उसके हाथ थी, मेरे हाथ गुलाब।।

मन गुब्बारे-सा हुआ, पढ़ा शब्द 'प्राणेश'।
मैसेंजर में दिख गया, गुझिया का संदेश।।

मिलन हुआ, बाँछें खिलीं, विरह गया वनवास।
फागुन आया लिख गया, रोम-रोम उल्लास।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
veershailesh@gmail.com