अकल्पनीय
अनिर्वचनीय
है-
उसका/मेरा
तादात्म्य।
निःसन्देह!
कौन है वह
..........
..........
अन्तिम सत्य
जीवन.....जीव
.....आनन्द
(चरम-क्षणिक)
(परम-स्थायी)
जो भी हो
मिट जाता है
देह का अस्तित्व
आत्मा विलीन हो जाती है
महासमुद्र में।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com
No comments:
Post a Comment